Abhishek Shukla

आख़िरी आख़िरी

मैंने हमारी सारी मीठी यादों को एक डायरी में लिखा था। डायरी को नाम दिया था “आख़िरी”। उसमें क़ैद किए थे वो सभी क़िस्से जो तुमने और मैंने साथ गढ़े थे, वो सभी जगहें जो हमारे ज़िक्र में ज़िंदा थीं, वो सभी फ़िक्रें जो हमें साथ जोड़े रखती थीं। आख़िरी: हमारे सभी यादगार अनुभवों का लेखा-जोखा।

मैंने ये किताब तुमसे छिपाकर रखी थी। सोचा था, हमारे आख़िरी दिन तुम्हें parting gift की तरह दूँगा। जिससे तुम आगे जब भी मुझे याद करो, इन मीठी यादों के ज़रिये ही याद करो। कि हमारे सभी झगड़ों और नाराज़गियों के बावजूद भी, तुम मुझे अपने जीवन का एक सुखद संयोग मानो।

आज जब वो पल क़रीब लग रहा है तो देखता हूँ कि इस डायरी में दीमक लग गई है। दीमक ने न जाने कितने ही पन्ने नष्ट कर दिये हैं। यादें तो दिख रही हैं, पर टूटी-फूटी, बिखरी सीं।

जैसे इसके पहले पन्ने पर मैंने कॉलेज का वो दिन लिखा था जब हमारी पहली बार बात हुई थी। वो मौजूद है। लेकिन उसके बाद सीधे मिलता है चालीसवाँ पन्ना जिसपर मैंने हमारी पहली ट्रिप का ज़िक्र किया था। बीच में दूसरा, तीसरा, चौथा… याद ही नहीं आ रहा उन सब पर क्या लिखा था।

ऐसे ही बीच के बहुत से पन्ने हैं जिनका अब कुछ भी याद नहीं आ रहा। हर रोज़ जब भी डायरी निकालता हूँ तो देखता हूँ कि पन्ने एक-एक करके ग़ायब होते जा रहे हैं। मुझे डर है, जब तक अलग होने का समय आएगा, शायद इसमें से कुछ भी ना बचे। शायद हमारी सभी मीठी यादों को दीमक निगल जाये।

इसीलिए तुम्हें देने के लिए ये पर्ची लिख रहा हूँ। इसे नाम दे रहा हूँ “आख़िरी आख़िरी”। इसे मैं किसी अलमारी या दराज़ में नहीं रखूँगा। इसे मैं पूरे समय अपने साथ लेकर चलूँगा। अपनी जेब में। चाहे जो हो जाये, मैं इसमें दीमक नहीं लगने दूँगा।

अगर आख़िरी तक डायरी का कुछ नहीं बचा, तो तुम्हें यही दे दूँगा। Parting gift में। अगर तुम इसे पढ़ो तो समझ जाना कि मैंने तुम्हारी हर याद को संजो कर रखा। ऐसा नहीं कि मुझे कद्र नहीं थी, बस दीमक ने काम ख़राब कर दिया। मैंने बचाने की बहुत कोशिश करी, आख़िरी तक, पर कुछ नहीं बचा।

तुम अगर इसे पढ़ो तो यक़ीन मानना, सब हमेशा इतना ख़राब नहीं था, जितना आख़िरी में लगता है। इसके पहले बहुत-सा बेहतरीन भी था। बिछड़ने के पहले बहुत-सा प्रेम भी था। मैं तुम्हारा ना होने से ठीक पहले तक तुम्हारा ही था।

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