Abhishek Shukla

अवसाद

अवसाद-ग्रसित औरत
फूल की तरह मुरझाती है
सिमटती जाती है
हर दिन, थोड़ा-थोड़ा
सूख कर समाप्त हो जाती है।

अवसाद-ग्रसित आदमी
खोखला होता जाता है
पेड़ के तने की तरह
गिर जाता है अचानक एक दिन
टूट कर समाप्त हो जाता है।

अवसाद-ग्रसित समाज
बबूल का जंगल हो जाता है
चुभता है जिसका हर सिरा
हर दूसरे सिरे को
सभी कुछ लहुलुहान कर देता है।

अवसाद, समस्त हरे को लाल कर देता है।

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