Abhishek Shukla

एक बच्चा

एक बच्चा
कचरा बीनता बच्चा
कचरे में से प्लास्टिक की बोतलें बीनता बच्चा
एक बड़ी सी सोसाइटी के बाहर बिखरे
ढेरों कचरे के टीलों में से
प्लास्टिक की चंद बोतलें बीनता बच्चा
चोटिल है

उसकी कोहनी से निरंतर रिसता ख़ून
हाथ पर जमी गंदगी में मिलते हुए
ज़मीन पर बिखरे कचरे पर टपक रहा है
बच्चा बीन रहा है तब भी बोतलें
निरंतर
हर एक अधिक बोतल का गणित मन में दोहराते हुए

“भाग नहीं तो और एक खाएगा”
चीख रहा है पीछे से बिल्डिंग का चौकीदार
दिखाते हुए वो डंडा
जो उसे मिला था बिल्डिंग की रखवाली के लिए
पर न जाने कब
जिसकी ज़िम्मेदारी में कचरे की रखवाली भी शामिल हो गयी
गुर्रा रहा है एक डंडा मार देने के बाद भी
निरंतर
हर एक अधिक बख़्शीश का गणित मन में दोहराते हुए

और सो रहा है इस सब से अनभिज्ञ
अपने वातानुकूलित साफ़-सुथरे फ़्लैट में
वो
जिसका कचरा है
जिसका डंडा है
जिसकी सोसाइटी है
और जिसके गणित हैं “इन जैसे लोगों” के गणित से अलग, बहुत ऊपर
जिसकी बख़्शीश का है मोल बच्चे के ख़ून से ज़्यादा
और जिसके कचरे की क़ीमत
बेफ़िज़ूल हिंसा से ज़्यादा

बच्चा चोटिल है
उसके बाद भी
रिसते खून के बावजूद निरंतर बोतलें बीन रहा है

एक बच्चा

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