कालिदास
हल्की धूप में फैले कपड़े
समय लेंगे सूखने में
धीमी हवा में बहती पतंगें
थोड़ा कम ऊँचा उड़ेंगी
धीमे उगेंगे पत्ते
चट्टानों की दरार से निकलते पेड़ों के
निराशावादी जीवन में
समय लेगी आशा पनपने में
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा इन्हें
रिश्तेदारों से
इश्तेहारों से
समाज से
पूँजी आधिपत्य से उपजे
मशीनी तंत्र-मंत्र
और
सकारात्मक सोच की ज़बरन ख़ुराक से
फूलों को जब खिलना होगा
वे तभी खिलेंगे
समय लेगी धरती
एक चक्र पूरा करने में
सूरज निकलेगा
बर्फ़ पिघलेगी
हवा बदलेगी
मिलेंगे काली के दर्शन
और बन जाएगा
कथित मूर्ख
कालिदास
इस कविता का रिकॉर्डेड वर्जन देखने के लिए यहाँ क्लिक करें या मेरे इंस्टा हैंडल @abhise_ पर साथ जुड़ें।