Abhishek Shukla

कालिदास

हल्की धूप में फैले कपड़े
समय लेंगे सूखने में
धीमी हवा में बहती पतंगें
थोड़ा कम ऊँचा उड़ेंगी
धीमे उगेंगे पत्ते
चट्टानों की दरार से निकलते पेड़ों के
निराशावादी जीवन में
समय लेगी आशा पनपने में

कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा इन्हें
रिश्तेदारों से
इश्तेहारों से
समाज से
पूँजी आधिपत्य से उपजे
मशीनी तंत्र-मंत्र
और
सकारात्मक सोच की ज़बरन ख़ुराक से

फूलों को जब खिलना होगा
वे तभी खिलेंगे

समय लेगी धरती
एक चक्र पूरा करने में
सूरज निकलेगा
बर्फ़ पिघलेगी
हवा बदलेगी
मिलेंगे काली के दर्शन
और बन जाएगा
कथित मूर्ख
कालिदास

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