Abhishek Shukla

मैं डरूँगा नहीं

तुम मुझे ख़त्म करने के लिए जो तलवार लाओगे
मैं उसकी भी शिल्पकारी की प्रशंसा करूँगा
मैं डरूँगा नहीं

मैं चाँदनी रात में उसकी चमकती देह पर पड़ती किरणों के शृंगार की कविता रचूँगा
मैं सुनाऊँगा तुम्हें गाथा उस युद्ध की जहां उसके लोहे ने शौर्य की परिभाषाएँ लिखीं
मैं उसकी निर्भीकता और साहस का प्रत्यक्ष आईना बनूँगा
तुम मुझे तलवार दिखाओगे
मैं स्वयं तलवार बनूँगा
मैं डरूँगा नहीं

मैंने तूफ़ानों में भी बारिश की बूँदों का आनंद लेना सीखा है
मैंने डूबने को पानी के भीतर साँस रोक कर तैरना समझा है
मैंने पथरीले रास्तों पर भी कंकड़ों को लात मार मन बहलाया है
मैंने सीखा है खेल का आनंद लेना, बैटिंग ख़त्म होने के बाद भी

तुम मुझे चाहे कितने भी धक्के दो
मैं पलटी मार दोबारा खड़ा जो जाऊँगा
अपने करतबों से तुम्हें हैरान करूँगा
मैं गिरूँगा नहीं
तुम कितनी भी मुझे गिराने की धमकी दो
कितनी भी तलवारें लाओ
किंतु
मैं डरूँगा नहीं

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