Abhishek Shukla

मैं मिलूँगा तुमसे

मैं तुमसे मिलूँगा
जैसे भटके राहगीर मिलते हैं
पता बताने वाले किसी भले इंसान से
मरुस्थल के बीच

मैं तुमसे मिलूँगा
जैसे मिलती है खुली साँस
देर तक गले में खाना अटके रहने पर
घुटन के बीच

मैं तुमसे मिलूँगा
जैसे मिलता है आधार सच्चे विचारों को
झूठ की ऊँची इमारतों के उस पार
दुविधा के बीच

मैं तुमसे मिलूँगा
और तुम्हारी रौशनी की एक छवि चुरा कर
एक बड़ा सा प्रकाशस्तंभ बनाऊँगा
सबसे ऊँची चोटी पर
मज़बूत पत्थरों के साथ

जिससे
फिर न फँसे कोई
किसी मरुस्थल में
फिर न महसूस हो
किसी को कोई घुटन
फिर न उलझे सत्य
किसी झूठ के साथ

बस
प्रकाश हो
प्रकाश हो
प्रकाश हो

इस कविता का रिकॉर्डेड वर्जन देखने के लिए यहाँ क्लिक करें या मेरे इंस्टा हैंडल @abhise_ पर साथ जुड़ें।