मैं मिलूँगा तुमसे
मैं तुमसे मिलूँगा
जैसे भटके राहगीर मिलते हैं
पता बताने वाले किसी भले इंसान से
मरुस्थल के बीच
मैं तुमसे मिलूँगा
जैसे मिलती है खुली साँस
देर तक गले में खाना अटके रहने पर
घुटन के बीच
मैं तुमसे मिलूँगा
जैसे मिलता है आधार सच्चे विचारों को
झूठ की ऊँची इमारतों के उस पार
दुविधा के बीच
मैं तुमसे मिलूँगा
और तुम्हारी रौशनी की एक छवि चुरा कर
एक बड़ा सा प्रकाशस्तंभ बनाऊँगा
सबसे ऊँची चोटी पर
मज़बूत पत्थरों के साथ
जिससे
फिर न फँसे कोई
किसी मरुस्थल में
फिर न महसूस हो
किसी को कोई घुटन
फिर न उलझे सत्य
किसी झूठ के साथ
बस
प्रकाश हो
प्रकाश हो
प्रकाश हो
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