Abhishek Shukla

बिखरी पड़ी हैं कविताएँ।

कुछ उन डायरियों में जिन्हें लिए घूमता था। कुछ उन एप्स में जो समय और फ़ोन के साथ बदलते रहते हैं। कुछ लैपटॉप में, कुछ हार्डडिस्क में, कुछ क्लाउड में। कुछ फ़ेसबुक पर, कुछ इंस्टा पर, कुछ व्हाट्सएप और मैसेंजर की चैट्स में।

कुछ उसकी राह देखते जो मैं था। कि स्वीकार कर ले उन्हें वैसे ही जैसे लिखते समय स्वीकारा था। कुछ उसके इंतज़ार में जो मैं हो सकता हूँ। कि दे सके उन्हें वो अभिव्यक्ति जिसके वो हक़दार हैं। कुछ उसके साथ फंसे हुए जो मैं हूँ। जो अवसाद और आनंद के बीच बंधी रस्सी पर, उन्हें पकड़, उनके भरोसे, तमाशा दिखाने निकला है।

कुछ उनके साथ जो प्रिय थे। कुछ उनके साथ जो प्रिय हैं। कुछ उनके साथ को प्रिय हो सकते हैं।

इन्हें समेटना ऐसा है जैसे जिए हुए जीवन को फिर से जीना और उसमें से पसंदीदा का चुनाव करना।

मैं चुनाव करने में अच्छा नहीं हूँ।

मैं प्रयासरत कवि हूँ। और ये संकलन, एक चल रहा प्रयास है।

इस प्रयास के तहत, मैं कविताएँ रिकॉर्ड कर इंस्टाग्राम पर भी पोस्ट करता हूँ। देखने के लिए यहाँ क्लिक करें या मेरे इंस्टा हैंडल @abhise_ पर साथ जुड़ें।

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