Abhishek Shukla

फिर उठ जाऊँ क्या

क्या करूँ
फिर उठ जाऊँ क्या

हाँ हो गया जो होना था
सो चुका नसीब
जितना उसे सोना था
नये सवेरे की नयी किरण में
नये सिरे ढल जाऊँ क्या
क्या करूँ
फिर उठ जाऊँ क्या

माना जो बीता अपने मन का ना था
कभी मैं अपने कर्म का
कभी वचन का ना था
अब नयी तारीख़ में नया वचन
मन मुताबिक़ लिख जाऊँ क्या
क्या करूँ
फिर उठ जाऊँ क्या

बहुत हो चुकी बातें, बहुत सह लिए अपमान
कठिनाई के बोझ तले
बहुत हुआ विश्राम
अब राम नाम का जाप लगा के
प्रत्यंचा धनुष पर चढ़ाऊँ क्या
क्या करूँ
फिर उठ जाऊँ क्या

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