Abhishek Shukla

पूरी नींद

वो सुबह साढ़े-पाँच बजे उठ जाती है
छह से सात सभी का भोजन बनाती है
सात से आठ बच्चों को तैयार कराती है
आठ से नौ तैयार होकर ऑफ़िस जाती है
नौ से पाँच नौकरी निपटाती है
पाँच से छह काम से वापस आती है
छह से सात बच्चों का होमवर्क कराती है
सात से आठ भोजन बनाती है
आठ से दस बचे हुए काम निपटाती है
इसी बीच में सभी को भोजन कराती है
फुर्सत निकाल ख़ुद भी खाती है
दस से ग्यारह अपना दिल बहलाती है
ग्यारह से बारह नींद के प्रयास में
आख़िर वो थक कर सो जाती है
और आधी नींद में जागकर अगली सुबह
वो फिर से, काम पर लग जाती है

वो पूरा दिन जब इतना सब करती है
तो फिर उसका नाम कभी
भू-भाग की हिस्सेदारी में क्यूँ नहीं आता
क्यूँ नहीं मिलता हक़ उसे
अपने हिस्से के इतवार पाने का
क्यूँ उसकी मर्यादा को
उसके त्याग से है तोला जाता

क्यूँ उसकी परछाई किसी की छाया नहीं बनती
क्यूँ, क्यूँ वो अक्सर दूसरों की परछाई में ही रह जाती है

वो जो सुबह साढ़े-पाँच बजे उठ जाती है
वो भला कभी पूरी नींद क्यूँ नहीं सो पाती है?

क्यूँ?

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